Friday, January 23, 2009

ख़ुद पर यकीन रख

Most of the time we feel nothing is favourable...for one of my friend, who is a wonderful writer but passing through some moments of unrest ...I want to pen :
गर तेरी कलम में ताक़त है तो वो बोलेगी
मुक़द्दर के बेशुमार दरवाज़े खोलेगी
अभी तो ये वक्त है तेरे इम्तिहान का
कामयाबी एक दिन तेरे आँगन में भी डोलेगी
ख़ुद पर अगर यकीन है तो खुदा भी साथ है
नहीं तो अपनी आँख भी पराये की हो लेगी
और अपनी जुबा किसी और की बोली बोलेगी
अपने ज़मीर को बचा और ईमान को भी
तसल्ली रख किस्मत बहुत ज़ल्द अपनी आँख खोलेगी
- नीलेश जैन
मुंबई
23-01-2009