Thursday, July 23, 2009

हताशा को हताश कर दो !

कभी ...अगर ऐसा लगे की तुम्हारे लिए हर रास्ता बंद हो गया है... तुम्हे अब कहीं भी; कितना भी, कभी भी स्वीकार किए जाने की संभावना मात्र भी शेष नही है ... तो भी घबराना नहीं ! कभी ऐसा भी लगेगा कि लोग तुम्हारे लिए अपने दरवाज़े बंद कर रहे हैं; तो भी हताश न होना क्योंकि हो सकता है कि वो दरवाज़ा सिर्फ़ वो तुम्हारे लिए ही बंद नही कर रहे हों; अपने लिए भी कर रहे हों ...सिर्फ़ तुम उनसे वंचित नही हो रहे हो...हो सकता है वो भी तुमसे वंचित हो रहे हों... परिस्थितियां दोनों के लिए समान हो सकती हैं। वैसे भी जब बाहर के दरवाज़े बंद होते हैं; तभी अन्तस् का --अन्दर का दरवाज़ा खुलता है; इसीलिए ठुकराए जाने से कभी न डरो क्योंकि ...

ठुकराया जाना तो एकलव्य और कबीर होने की शर्त होता है!

आपका नीलेश
मुंबई २४-०७-२००९