Monday, July 27, 2009

लिखो तो कुछ ऐसा लिखना ...

ये उन सब के लिए एक साथ -- जो अक्सर पूछते हैं कि क्या कभी कुछ ऐसा भी लिखा जा सकता है ...जो लोगों को अच्छा भी लगे और सच्चा भी । ...ऐसे प्रश्नों में कभी प्रश्न चिन्ह (?) लगा होता है; तो कभी विस्मयबोधक (!) ...दोनों ही परिस्थितियौं में मुझे एक ही युक्ति दीखती है :

एक दिन अपने सामने
साफ़
सा एक आइना रखना
फिर
उसके अक्स पर कुछ लिखना

कोई
ऐसी बात
तुम
उसमें कहना
जिसमें
सिर्फ़ तुम रहना

अपने
हर जज़्बात के साथ
सब
उजले - मैले ख्वाब के साथ
छू
लेने वाले एहसास के साथ

पर
जब भी धूमिल हो जाए
लिखने में ख़ुद का दिखना
तब
कभी नहीं ; तुम कुछ भी लिखना

क्योंकि बेहद ज़रूरी है
अपने
लिखे में दिखते रहना
और
ख़ुद को देखते हुए लिखते रहना...
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~
तब ही ख़ुद को अच्छा लगेगा और दुनिया को सच्चा लगेगा . … शुभ सृजन ... रहे अनंत !!…

नीलेश जैन ,
मुंबई
२७-०७-२००९