Monday, August 24, 2009

दुख का भविष्य; सुख के भविष्य से अधिक सुखकर होता है!

कुछ दिनों से कुछ लिख नहीं पाया क्योंकि जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा था । एक तरफ़ जीवन देने वाले का जीवन था, तो दूसरी तरफ़ ईश्वर पर विश्वास की दो तरफा परीक्षा चल रही थी । दो तरफा इसलिए क्योंकि मुझे परीक्षा देनी थी और किसी को अपना सनातन अस्तित्व सिद्ध करना था । आख़िर में दोनों ही सफल रहे। इस समयावधि में कई बार स्वयं को टूटने के कगार पर पाया ... पर हर बार स्वयं को समझाया कि समय अच्छा आएगा... ये तो परिवर्तन का नियम है ...क्योंकि

परिवर्तन ही स्थायी है;शेष तो परिवर्तनशील होता है!

आपका नीलेश
२४-०८-०९