Friday, August 28, 2009

गंगा को पाना है ...तो गोमुख जाना ही होगा !

हम समझते हैं कि गंगा को हम हरिद्वार में पा सकते हैं ; प्रयाग की त्रिवेणी में या फिर उससे भी आगे ... गंगा यहाँ एक प्रतीक है - हमारे प्रयासों का। ये खोज - ये गवेषणा किसी की भी हो सकती है ... किसी के लिए भी हो सकती है। मूल बात ये है कि ऐसा समझना अपनी भूल है कि हम किसी को उसके मूल से दूर जाकर पा सकते हैं ... मेरी निगाह में यही 'मूल की भूल' है । इसके लिए ये अपरिहार्य है कि हम धारा के विरुद्ध जाना सीखें। ये कार्य आसान नहीं है ... पहले तो इसको समझना और फिर उस समझ को अमल में लाना क्योंकि ...

धारा के विरुद्ध ही 'तैरना' होता है;

धारा
के साथ तो 'बहना' होता है...

बह
तो निष्प्राण भी सकते हैं;

परन्तु
तैर सिर्फ़ चेतन ही सकते है !


आपका नीलेश