Tuesday, January 27, 2009

माँ कभी नहीं मरती!

Days back someone lost his mother...so I penned some lines for him...but in actual for whole world :

माँ के मन की झोली में
दुआओं की तिजोरी में
कभी कुछ कम नहीं पड़ता
माँ तो वो खजाना है
लुटाना जिसने जाना है
झूठा उसका जाना
है !

दर्द के हर एहसास में
पाया उसको पास में
रोटी की बनावट में
आज भी हर आहट में
उसी का गुनगुनाना है
लोरी सा तराना है
झूठा उसका जाना है !

खुशी-गम की पहेली में
वक्त की आँख -मिचोली में
कभी जो साथ न छोडें
ये वो रिश्ता पुराना है
माँ को आता निभाना है
झूठा उसका जाना है !

हमेशा साथ है मेरे
आज भी पास है मेरे
उसे खोकर भी पाना है
झूठा उसका जाना है !
झूठा उसका जाना है !!


Neelesh Jain
Mumbai

Sunday, January 25, 2009

एक बार अपने ब्लॉग पर मैंने डूबता हुआ सूरज दिखाया था एक की आपत्ति थी कि आपने डूबता हुआ सूरज क्यों दिखाया है, जबकि आप आशा के सूरज की बात करते रहे हैं ।
भाई जो मुश्किल में होता है, वो डूबते हुए सूरज को ही अपना प्रतीक समझने लगता है , उसे ही तो दिखाना है कि दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील है; सिवाय परिवर्तन के नियम के और यही मानकर दुःख में घबराओ नहीं और सुख में इठलाओ नहीं; क्योंकि न तो ये स्थायी है न वो!
इसीलिए जब भी ये लगे कि आशा की कोई किरण नहीं दिख रही है, तो बहुत गहरे जाकर सोचना होगा कि ये कमी रोशनी की है या उस आँख की जो उसे देख नहीं पा रही है। अगर अन्दर का जज़्बा ज़िन्दा रहे तो इतना काफ़ी है :
वो
जो दूर
वादियों में
जलता है एक दीया
कुछ नहीं दिखता उससे
पर सच है कि रोशनी रही है

नीलेश
मुंबई

Saturday, January 24, 2009

ख़ुद की अदालत

एक ने लिखा है कि वो परेशां है। वो कॉरपोरेट में काम करता है , उसे लगता है कि वो जहाँ हो सकता था वहां इसलिए नहीं पहुँच पाया है क्योंकि जो नाकाबिल हैं , वो बेवज़ह उससे आगे हैं।
मेरे भाई! ...ये सच है कि ऐसा होता है, पर हमेशा ही हो ऐसा भी नहीं है, इसीलिए लिख रहां हूँ, इस पर भी गौर करना :

गर किसी की ख्वाहिश है कि वो तारों की सवारी करे
तो ये भी ज़रूरी है कि वो कुछ और तैयारी करे

गर लगे उस नाकाबिल को मिला , जो मेरे मुकाबिल नहीं
तो हकीकत के बाज़ार में तू अपनी ख़ुद बाजारी करे

ख़ुद को रख आईने में और ख़ुद की कीमत लगा
ख़ुद को तोले और ख़ुद ही ख़ुद की ख़रीददारी करे

जब उम्मीद के चिराग बेनूर हों और तमन्नाएँ बेहिसाब जगें
तो ऐसे में जरूरी है कि अपने ईमान की पहेरदारी करे

हक तभी है तुझे अपने बारे में फैसला लेने का
जब शर्त ये पूरी हो कि तू ख़ुद की तरफदारी करे

नीलेश
मुंबई

Friday, January 23, 2009

ख़ुद पर यकीन रख

Most of the time we feel nothing is favourable...for one of my friend, who is a wonderful writer but passing through some moments of unrest ...I want to pen :
गर तेरी कलम में ताक़त है तो वो बोलेगी
मुक़द्दर के बेशुमार दरवाज़े खोलेगी
अभी तो ये वक्त है तेरे इम्तिहान का
कामयाबी एक दिन तेरे आँगन में भी डोलेगी
ख़ुद पर अगर यकीन है तो खुदा भी साथ है
नहीं तो अपनी आँख भी पराये की हो लेगी
और अपनी जुबा किसी और की बोली बोलेगी
अपने ज़मीर को बचा और ईमान को भी
तसल्ली रख किस्मत बहुत ज़ल्द अपनी आँख खोलेगी
- नीलेश जैन
मुंबई
23-01-2009

Thursday, January 22, 2009

Dear All

Love!

I wish to help you... for any problem...what you face in your emotional or in professional world...this world or that world. I am not an expert of any thing but I know most of the problems may be solved, once you share it with someone...as in the process of sharing when we elaborate the problem many small things come out, which itself guide us to get the solution...as the biggest guide is very much inside...with in us. I am ready to drive chariot for you but you have to fight the Mahabaharat yourself!

So, don't hesitate...I assure what you share with me will be as secret as told to yourself only.

Your Saarathi

Neelesh

neelesh.nkj@gmail.com