Wednesday, February 24, 2010

अगर हो सके तो ....

अगर हो सके तो ...

इंसान मुकम्मल होना

अमन की ज़मीन में

अमन ही बोना ।


अगर हो सके तो

बिन मतलब के

कोई दोस्त बनाना

बिना शर्त का भी

एक रिश्ता निभाना

ख्वाहिशों को

हदों की हद

तक ही बढ़ाना

ईमान की चादर

तक ही पैर फैलाना

और जितना हो हासिल

उसे ही ख़ुशी से अपनाना

पर पाने की चाह में

ख़ुद को कभी खोना

क्योंकि

हर बात से ज़रूरी है

ख़ुद का होना ।


अगर हो सके तो

बिन कागज़

बिन क़लम

एक ऐसा भी

इतिहास लिखना

जिसमें इंसानी रिश्तों का

हर ज़ज्बात लिखना

पर जब तलक न हो

गहरे महसूस

तब तलक न

स्याही में

क़लम डुबोना

और लिखने में कुछ होना

तो हमेशा कबीर होना

अमन की ज़मीन में

अमन ही बोना


अगर हो सके तो

इंसान मुकम्मल होना

अमन की ज़मीन में

अमन ही बोना ....!!!


आपका नीलेश

मुंबई