Wednesday, November 10, 2010

किसी के पेड़ गमलों में लगे हैं; तो किसी के जमीन में

इससे फर्क तो पड़ता ही है कि किसकी जड़ों को जमने के लिए कितनी मिट्टी मिली है और कितना फैलावसच तो ये है कि जड़ों की गहराई जितनी गहरायेगी ... ऊँचाई उतनी ही ऊँचान पायेगी! इसीलिए जरूरी है कि हम अपनी गहराई बढाएं और फैलाव भी ... कभी समझ की; तो कभी नज़रिये की

ये भी सच है कि हम सबको पनपने के लिए तो एक जैसा वातावरण मिलता है और ही अवसरइसीलिए ये भेद तो स्वाभाविक है; लेकिन ये अस्वाभविक है कि हम इस भेद को शून्य करने के लिए प्रयास करेंकोई बात नहीं कि हमारे बीते हुए कल ने हमें क्या दिया पर आज अगर हमारा विवेक सच में विवेकशील है, तो हम विस्तार को ही चुनेंगे और आने वाले कल के लिए ये संकल्प लेंगे कि हम अपने दायरों के दायरे तक सीमित नहीं रहेंगें ... सोच को नया आकाश देंगें... और विचार को नया सागर

आपका नीलेश
मुंबई
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