Monday, January 30, 2012

जब छोटे थे तब एक थे

हम गलियों से ज़्यादा

छतों पर खेले

तब केवल

पतंग और कबूतर की उड़ान थी

या छोटी-छोटी मुंडेरों की छलांग थी

तब दूर तक फैली थी

हमारी छतों की दुनिया

तब तक दीवारें नहीं उठीं थीं

घर भले बंटे थे ;

मोहल्ले नहीं .

Friday, January 27, 2012

बात वही सच नहीं, जो दिखती है

जब
लोग

समझ रहे  थे
वो
अँधेरे में है
...
दरअसल
तब

सूरज

उसकी
मुट्ठी में था


आपका नीलेश


Thursday, January 5, 2012

ज़िन्दगी कोई गणित की किताब नहीं


ज़िन्दगी

कोई गणित की किताब नहीं

यहाँ दो-और-दो ...हमेशा चार नहीं

जो ऊपर है, वो 'ऊपर' ही हो

या जो नीचे है , वो 'नीचे' ही हो

ये दुनिया की दलील है

तराज़ू का हिसाब नहीं ।

आपका नीलेश