अक्सर लोग दूसरों को 'ये करो या वो करो' के मशवरे दिया करते हैं । असल में साहिलों पर बैठकर मशवरे देना बहुत आसान होता है; बजाय इसके कि ख़ुद पानी में उतरा जाए । जो लोग निष्क्रिय आलोचना मात्र ही करते हैं कोई सार्थक प्रयास नहीं ...ऐसे लोगों से मेरा कहना है :
बहुत हो चुके दूर से मशवरे
आइए अब पतवार में हाथ दीजिए
बहुत, बहुत हो चुकी है बारूद
अब हो सके तो थोड़ी आग दीजिए
बहुत अच्छी है आपकी खामोशी
मगर वक्त की दरकार है
अब आवाज़ में आवाज़ दीजिए।।
...हाँ ये बात उस पर भी लागू होती है ...जो लिख रहा है :
नीलेश, मुंबई
१७-०७-०९