Tuesday, June 16, 2009

प्रेरणा कहती है...

जब
चढ़ रहे थे
तुम शिखर पर
तब 'मैं'
तुम्हारे साथ थी
और
जो जल रही थी
तेरे अन्दर
वो मेरी ही
आग थी !


ये बात तब लिखी जब.... एक बार देखा कि एक पर्वतारोही अकेला चढा जा रहा है ...उसे मालूम भी नहीं कि उसका अगला कदम उसे कहाँ ले जा सकता है ...फिर वो क्योँ चढ़ रहा है ...तब लगा ... कोई है ...कुछ है ...जो उसे ऐसा करने की शक्ति दे रहा है ... तब अनुभूत हुआ जब कोई साथ नहीं होता है, तब भी कोई 'प्रेरणा' हमारे साथ होती है ...वो आत्म -प्रेरणा भी हो सकती और पर-प्रेरणा भी ... उसकी आग ही उर्जा बनती है ....इसलिए जिसने उसको पा लिया तो समझो पा लिया कुछ करने का ...कुछ कर दिखाने का अनंत सूत्र ...अब बढ़ना तय है ... प्रेरणा का मार्ग सदैव 'शिखरोन्मुखी' जो होता है !

आपका
नीलेश जैन
मुंबई