Tuesday, January 12, 2010

‘?’ से …’!’ बन गये आप

एक ख़त लिख रहा हूँ

इस ख़त में क्या है

आप का ख़्याल या प्यार

शिकायत या सवाल

नहीं जानता

फिर भी पूछ रहा हूँ

आप दूसरों की तरह क्यों नहीं थे ?!?


आपको भगवान से

कभी कुछ मांगते क्यों नहीं देखा

सिवाय इसके कि

आपका ये विश्वास बना रहे कि वो ईश्वर ही क्या

जो ये न जाने कि उसके बन्दे को चाहिए क्या

आप की अपनी फ़ेहरिस्त में

आप का ही नाम क्यों नहीं था

सबके पीछे थे ; फिर भी सबसे पीछे थे

सिवाय तब जब सबसे आगे बढ़कर

आप मांग लेते थे हमारे हिस्से का दुःख अपने लिए ।


कभी भी बहुत जुटाने या जोड़ने की चाह

क्यों नहीं थी आपको !

सिवाय सारे घर के लिए सुकून और शांति के

दिखावे से इतना दूर कैसे थे आप !

आपकी चाहतें सिमटी थीं या आपने समेट लीं थीं

सब कुछ इतना सहज और सरल कैसे था आपके लिए

खाने के नाम पर कुछ भी कैसे खा लेते थे आप !

बस खीर अच्छी लगती थी और गुड़ भी

शायद मीठे के प्यार से ही इतने मीठे थे आप ...

नमकीन में अच्छा लगता था

मूंगफली के साथ थोड़ा सा नमक चटनीवाला ।


कुछ भी पाने की जल्दबाज़ी क्यों नहीं थी आपको !

सिवाय ट्रेन पकड़ने के या

दिये समय पर ही किसी से मिलने के

आप को कभी झुंझलाते हुए क्यों नहीं देखा

सिवाय देर से तैयार होने पर

या ताला लगाने के बाद

जलती बत्ती या चढ़े दूध की गैस बंद करने के लिए

फिर से ताला खोलने पर ।


आप ज़्यादा सुनते नहीं थे या सुनना नहीं चाहते थे

क्यों अपनी चुप्पी के लिए कह देते थे

बेबात की बात से बचने के लिए

इसी सरल नियम पर चलो

दो के बीच दो की ही बात करो

तीसरे की बात कम ही सुनो ... कम ही कहो

और जब तक मुनासिब हो तब तक चुप ही रहो ।


आप को कभी समझ क्यों नहीं आया रंगों का मिलान

किसी भी रंग की शर्ट के साथ

कोई भी पैंट कैसे पहन लेते थे !

और पूछने पर मुस्करा कर बस कहते थे इतना

बताओ महावीर और गाँधी पहनते थे कितना

और समझाते थे कपड़ों से जो तुम्हें आंकें

समझ लो उसके पास नहीं हैं वो आँखें

जो इंसान के अन्दर गहरे झांकें ।


क्यों मानते थे आप

माँ को अपने से भी ज़्यादा

जबकि कभी -कभी

आपकी बातें मिलती भी नहीं थी

फिर भी आप आख़िर में

उनकी ही बात क्यों मान लेते थे

और हँस कर बस इतना ही कहते थे

एक के चुप होने से ही

हम एक होते हैं - रहते हैं

किसी एक को तो चुप होना ही है

तो पहले मैं ही क्यों नहीं

और फिर माँ को मनाते हुए कहते थे

अजी सुनती हो ... नयी पिक्चर लगी है … आज हो जाये !

आप ही से सीखा था हमने कुट्टी-मिल्ली का प्यारा खेल

थोड़ा सा झगड़ा और फिर … फिर से मेल ।


आप इतने शांत … ठहरे हुए कैसे थे

क्यों नहीं थी आप में औरों जैसी बे-चैनी !

बहुत कमाने की …या दूसरों से आगे निकल जाने की

क्यों किसी के पूछने पर कह देते थे

हमारी कमाई तो हमारे बच्चे हैं

हर दौलत से अच्छे हैं

क्या सच में आपको

हम पर इतना विश्वास था

या अपनी सच्ची परवरिश पर

वो आपका ऐतबार था ।


हमको बुरा लगता था

आपका दीदी को हर बात में बचाना

वो हम सबसे पहले घर में आयीं थीं

पर सबसे पहले घर से चली भी तो गयीं थी

उनकी शादी पर आपको पहली बार

बात -बात पर गुस्सा होते देखा था

तब समझ नहीं पाये थे

आप तो कभी गुस्सा नहीं होते

फिर उस दिन ही क्यों !

बड़े होकर समझ आया

तब आप गुस्सा नहीं हो रहे थे

दीदी के बिना घर,

घर कैसे होगा ...कैसा होगा

ये सोच कर गुस्से की आड़ में

मन-ही-मन रो रहे थे ।


बस एक बार ही तो डांटा-डपटा था आपने

बड़े भईया को कंचे की लत न छोड़ने के नाम पर

पर वो डांट नहीं आपका प्यार था

फिर आपने ही तो उन्हें समझाया था

माँ -बाप दिल से बुरे नहीं होते हैं

और तुम्हें मारने के बाद ख़ुद भी

मन-ही-मन रोते हैं

और समझाया था

बच्चों को सही रास्ते पर लाना हर माँ-बाप का फ़र्ज़ है....

आप की वो डांट आज भी घर के इतिहास में दर्ज़ है ।


आपके लिए बड़ी भाभी का घर में आना

दीदी को वापस लाना था - वापस पाना था

वैसे भी सिर्फ क़द का ही तो फ़र्क था

दीदी लम्बी थी और भाभी छोटी

दीदी यहाँ सबसे बड़ी थीं

और ससुराल में सबसे छोटी बहू

जबकि भाभी अपने घर में सबसे छोटी थी

और यहाँ सबसे बड़ी बहू

माँ भी तो ऐसी ही थीं

अपने घर में सबसे छोटी और यहाँ सबसे बड़ी बहू

तब लगा इतिहास क़िताबों में ही नहीं

घर में भी अपने को दोहराता है

पात्र भले बदल जायें पर

परिस्थितियों के रूप में वापस आता है ।


सब जानते हैं आप मझले को ज़्यादा प्यार करते थे

शायद बहुत पहले से ही आप जानते थे

वो हीरा है भला कब तक इस खान में टिक पायेगा

और उसका पारखी इस देश में नहीं मिल पायेगा

वो ऊँची उड़ान का पंछी है

उसके लिए ये आसमान कम पड़ जायेगा

वो जायेगा फिर पता नहीं कब आएगा

जितना भी है प्यार दामन में

समय रहते लुटा दो

और जब समय कम हो तो

प्यार का घनत्व बढ़ा दो ।

उनके परदेस जाने पर

आपका मन अन्दर से परेशान था

हैसियत से ज़्यादा का इंतजाम

वैसे भी कहाँ आसान था

....

फिर भी आखिर सब इंतजाम हो ही गया

ठीक वैसे ही जैसे हो गया था

छोटी बुआ , चाचा और दीदी की शादी पर

बड़े भईया के इंजीनियरिंग में एडमिशन पर

घर की ज़मीन खरीदने पर

पहली कार के आने पर

हर कठिन समय के आने और

कुछ ज़्यादा ही लम्बे ठहर जाने पर

तब लगा कि 'कोई' है जो

भले कभी नहीं दिखता है

पर सच्चे लोगों का ख़्याल रखता है

और दादी ठीक कहती थीं

बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद से

अच्छे लोगों का कोई काम

कभी नहीं रुकता है ।


मैं आपके साथ हमेशा रहा

सिवाय तब जब आप जा रहे थे

इसका दर्द कभी मिट नहीं सकता…

आपने मुझे आज़ादी दी

जो सही था हर वो काम करने की

अपनी राहें ख़ुद बनाने और

उन पर चलने की

जानता हूँ आपको अच्छा लगता था

अख़बारों में छपी अपने बच्चों की तस्वीरें

आने वालों को दिखाना

भईया और मेरे सर्टिफिकेट्स और अवार्ड्स

दीवारों पर सजाना

बच्चों को अपने ज़माने की बातें बताना

हमने तो २०० रुपये से सर्विस शुरू की थी

तब घी इतने का था और पेट्रोल उतने का

न समझ आने वाले

सर्विस मैटर भी हमें समझाना

अमेरिका से लौटने के बाद

वहां के सिस्टम पर नोट्स बनाना

इंडिया की हर प्रॉब्लम की जड़

स्लो ज्यूडिशरी या करप्शन को बताना

पी डब्लू डी के पुराने किस्से

और दोस्तों की कहानियां सुनाना

गोयल अंकल का आपको

डिपार्टमेंट का काम सिखाना या

गुप्ता अंकल की फॅमिली के साथ

फिल्म और पिकनिक जाना

लाल अंकल के साथ

हर अच्छा -बुरा समय बिताना

दिवाली से पहले

दुछत्ती को साफ़ करवाना

ऑफिस की बेकार फाइलों के

बस्ते खुलवाना -बंधवाना

और फिर पुरानी चीज़ों के साथ

झड़वाकर वापस रखवाना

पुरानी अलबमों को

ख़ुद ले जाकर ठीक करवाना

दूर के रिश्तेदारों को

ख़त लिखकर बुलाना

या उनके बुलावे पर

शादी -ब्याह में चले जाना

कभी-कभी हम सब को

ये सब अज़ीब भी लगता था

फिर ये सोचकर चुप हो जाते थे कि

रिटायर्मेंट के बाद शायद

ये आपका अपना तरीका है

ख़ुद को उलझाये रखने का

सबको याद करते हुए

ख़ुद को भुलाये रखने का ।


फिर आपको मिल ही गया

एक लाइफ़ प्रोजेक्ट

आपको पहली बार इतना खुश देखा

शायद अपनी शादी से भी ज़्यादा अपनी शादी की

पचासवीं के आने पर

और उसे दिल खोलकर मनाने पर

वो शायद आपकी चाहत की

सबसे ऊँची मंजिल थी

हम सब भी तो कितने खुश थे

मुकेश-वीनू , शैलेष-शालिनी , धर्मेश-सीमा , नीलेश-रश्मि

अंकित-अनुभा , हर्ष-शुभांकन , अंकुर-ईशा , सान्या-आशिमा

सारे चाचा-चाची और खानदान के सारे बड़े और बच्चे

सबका नाम छपा था एक साथ एक ही कार्ड में

दूर -दूर से लोग आये ... रिश्तेदार और दोस्त भी

तब लगा आप जिन रिश्तेदारों की बातें करते थे

वो सच में थे

चरण स्पर्श करते -करते हम सब …

हर बहू ने सर पर पल्ला रख लिया था

क्योंकि आपकी निगाह में वो भले आपकी बेटियां थीं

पर दुनिया के लिए तो घर की बहुएं ही थीं न

पुराने लोग जब दौड़ कर गले मिल रहे थे

मुरझाये रिश्ते फिर से खिल रहे थे

दूर के रिश्तेदारों ने भी करीबी दिखलाई थी

आपके बुलावे का मान रखा था

ठीक वैसे जैसे आप हमेशा रखते थे उनका

अच्छा हुआ सब से मिल लिये

ईश्वर ने भी अपनी ख़ुशी जतलाई थी

२५ दिसंबर था

फिर भी धूप निकल आई थी

....

आपने हर बेटी-दामाद की बिदाई-टीके तक की लिस्ट

एक पक्के सरकारी कागज़ जैसी ख़ुद ही बनायी थी

आख़िर सबकी बिदाई हो ही गयी …

और आपको मिला बिदाई का एक अज़ब तज़ुर्बा

…..

वो दिन तूफ़ान-सा आया और तूफ़ान-सा निकल गया

उसके बाद एक अज़ब-सा ठहराव आने लगा...

फोटो -विडियो के दौर धीरे -धीरे कम होने लगे

पहले आपको ज़्यादा अच्छा लगता था सोना

अब न जानें क्यों जागना

मेरे जाने की खबर वज़ह थी या कुछ और

या दोनों ... नहीं जानता

कुछ था जो आप

या तो खुल कर नहीं बता रहे थे

या हम सब से छुपा रहे थे

गुड़िया और बच्चों को यहाँ

जल्दी से क्यों भेज देना चाहते थे

ये अकेलापन आपने क्यों चुना समझ नहीं आया

रोटी धीरे -धीरे गिनती में क्यों सिमट गयी

भूख घड़ी देखकर ही क्यों लगने लगी


अब
क्यों अख़बार से आपका लगाव घटने लगा

अब क्यों भईया के अप्रेज़ल लोगों को

पढ़कर नहीं सुनाते थे आप

अब क्यों मेरा लिखा अख़बारों से नहीं काटते थे आप

अब क्यों मेरे दोस्तों के आने पर

उनके साथ नहीं बैठते थे आप

अब क्यों ताश खेलते समय माँ से

लड़ते क्यों नहीं थे आप

अब क्यों रिटायर्ड पर्सन्स की मीटिंग में

नहीं जाना चाहते थे आप

ये सब आज समझ आने लगा है

आपने अकेले रहना चुना …

जिससे साथ रहने की आदत रुकावट न बने …

आपने हम सब से अपना दर्द छुपाया

और चले गये ….बस चले गये !


हम सबको शिकायत है

घर कह रहा है इस दर से क्यों नहीं गये

कार कह रही है मुझे कभी ख़ुद क्यों नहीं चलाया

पुरानी डायरी और आपकी अलमारी कह रही है

हमें अब कौन संभालेगा

आपके सूट, टाई और सब सामान कह रहे हैं

क्या अब हम बस यूहीं …यूं ही रहेंगे

दुछत्ती में पड़ा पुराना सामान कह रहा है

अब क्या आप दिवाली पर भी नहीं मिलेंगे

...

सबको अपनी -अपनी शिकायत है

माँ कहती है हर जगह साथ लेकर जाते थे फिर ….

दीदी कहती हैं मेरी देखभाल में कहाँ कमी रह गयी

भईया-भाभी सब कहते हैं

आख़री वक़्त में कितना कम समय दिया

बुलाया पर इंतज़ार नहीं किया

बड़े भईया कहते हैं

अब ग्रीन कार्ड की खबर किसे सुनायेंगें

बड़ी भाभी कहती हैं

अब बच्चों के रिजल्ट किसको बतायेंगे

मझले भईया कहते हैं

अवार्ड्स की फोटो अब किसको दिखायेंगें

छोटी भाभी कहती हैं

अब 'पापाजी' कह कर किसको बुलायेंगे

गुड़िया कहती है

अब खीर किसके लिए बनायेंगे

मुझे शिकायत है कि आप यहाँ आये बिना ही ...

बच्चे सहमे हैं ...

याद करते हैं पर शिकायत नहीं

जीजाजी भी हमेशा की तरह खामोश हैं ।

......

आख़री समय में आप को तीन बेटे और मिल गये थे

संजय भईया, के ० के ० और अनवर भाई

कहने को दोस्त थे हमारे, पर बेटों-सी रस्म निभाई

अनवर भाई कहते हैं हमारी दुआ भी काम न आई

बगल वाले सिंह अंकल कह रहे थे

पच्चीस साल का साथ था

कभी आपस में कोई बात नहीं हुयी

घरों के बीच दीवार थी पर हमारे बीच कभी नहीं

सिन्हा अंकल भी कह रहे थे

८५ की उम्र में जाना तो हमें था

और आप ७२ में ही चले गये ... अकेला छोड़ कर

संतोष कहता है अब साहिब नहीं रहे तो

किसका आशीर्वाद लेकर इम्तिहान देने जाऊं

आज भी दूधवाला आपको याद करता है

कहता है बाबूजी जानते थे कि हम पानी मिलाते हैं

फिर भी कभी कुछ नहीं कहा

सिर्फ इस बात के कि पानी छान के ही मिलाया करो

हमारे यहाँ बिना छना पानी नहीं पीते

एक अच्छी बात आपको बतानी है

अब उसके दूध में पानी नहीं होता है

आँख में होता है …।


पानवाला -पेपरवाला सब ठीक हैं

मूंगफलीवाले ने दाम बढ़ा दिये हैं - ६ की एक पुड़िया

अब दरवाज़े पर वो ऊंची आवाज़ में नहीं चिल्लाता है

घंटी बजाकर कर एक ही पुड़िया देकर चुपचाप चला जाता है

पर चटनीवाले नमक की अभी भी दो ही पुड़िया देकर जाता है ।

…..

माँ को नहीं बताया था आपको बता रहे हैं

बड़े चाचा का ऑपरेशन हो गया है

आप के जाते ही दिल का दौरा पड़ा था

आपसे अटैच्ड भी तो बहुत रहे हैं न …

देखने नहीं जा पाया हूँ

आप चिंता करें

मौका मिलते ही जाऊंगा

अब सारे सम्बन्ध मैं ही निभाऊंगा

पिछले हफ्ते सत्यवती बुआ भी नहीं रहीं

एक के बाद एक ... अब और क्या बताएं

पता नहीं क्यों बुरी ख़बर

कभी अकेले क्यों नहीं आती है ....


आप चिंता न करें

भुवन अब और भी अच्छा खाना बनाने लगा है

मुन्नी समय पर सफाई कर जाती है

संतोष बिना टोके गाड़ी धीरे चलाने लगा है

ऊपर-नीचे के सारे ताले और गैस बिना कहे ही

रात में चेक करके जाता है

पेड़ों में रोज़ पानी भी देने लगा है

....

आप चिंता न करें

घर में सारा साज़ो-सामान सही चल रहा है

कार का शीशा ठीक करवा लिया है

पानी का प्रेशर और लेवल

लाइट की वोल्टेज , ए. सी. की गैस

सब ठीक है

मकान और ज़मीन के काम

कचहरी की धीमी चाल में हो ही रहे हैं

नॉमिनी वाला काम हो गया है

आपके एकाउंट में माँ का नाम चढ़ गया है

पोस्ट ऑफिस के एम आई एस का पैसा

रेगुलर आ रहा है

लॉकर का किराया दे दिया है

नगर -निगम का बिल अभी नहीं आया है

इंग्लिश का अखबार बंद करा दिया है

माँ को मोबाइल चलाना आ गया है

लैंडलाइन कटवाने की बात चल रही है

बिजली का लोड कम करा दिया है

हम धीरे-धीरे आदत डाल रहे हैं

इंश्योरेंस और टैक्स ख़ुद भरने की

....

सब मम्मी का ख़्याल रखते हैं

सामने वाली आंटी और भाभी

बब्बू और राजन

पड़ोसी आते रहते हैं

और लोगों के फ़ोन भी

समय कट ही जाता है

न्यूज़ बदलती है पर

सीरियल वैसे ही खिंच रहे हैं

और हाँ …

माँ की फैमिली पेंशन भी बन गयी है।

....

आप यहाँ की चिंता न करें

यहाँ धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा है

माँ फिर से दीपक जलाने लगीं हैं

अब जीजाजी ही घर के बड़े हैं

लगता है हर मोड़ पर साथ खड़े हैं

दीदी मम्मी-जैसी बन गयी हैं

दोनों भईया और भी बड़े हो गये हैं

भाभियों का सबके लिए प्यार

.... और भी बढ़ गया है

गुड़िया अकेले में खूब रो ली है

और मैं लिख भी ले रहा हूँ

अंकित भी समझदार हो रहा है

अनु को भी सब समझ आने लगा है

चिक्की -निक्की कॉलेज में अच्छे चल रहे हैं

अंकुर -ईशा , सान्या -चुनमुन

सब मन लगा कर पढ़ रहे हैं …


..............!!!


पर एक बात है !


कभी यूं ही ... अचानक

किसी खिड़की का खड़क जाना

कभी घर के किसी गमले में

बिन-मौसम किसी फूल का खिल जाना

कभी आपकी तस्वीर पर चढ़ी

माला का हलके से हिल जाना

कभी किसी हवा के झोंके का

बहुत करीब से छू कर निकल जाना

ऐसा लगता है इन सब में... आप हैं

और जैसे कल थे साथ वैसे ही... आज हैं

.....

शेष तो बस शेष है ... हैं ....

....

आप के हम सब और

हम सबका आपको....

सादर आत्म स्पर्श ...!

आपका

नील

Wednesday, January 6, 2010

'अंतराल' ठहराव नहीं होता.....

लोग पूछ रहे हैं : इनते दिनों से कुछ नया क्यों नहीं?
अंतराल है... अधीर हों; क्योंकि अंतराल, ठहराव नहीं होता
बीज बो दिया हैं ...
अंकुर फूट चुकें हैं ...
फसल पक रही है ...
किसान जैसा धैर्य रखें ...
कुछ रच कर लाऊंगा ... जल्द आऊंगा ...

आपका नीलेश
मुंबई
०७-०१-२०१०