Wednesday, April 7, 2010

'सवाल' .... तहकीक़ात भी हो सकता है

हर सवाल.... जवाब के लिए पूछा जाए ... ये ज़रूरी नहीं

कई बार हमारे सामने ऐसे हालात आते हैं जब हमसे कोई कुछ पूछता है, पर सच ये होता है कि वो जवाब ख़ुद जानता है …और ये जानना चाहता है कि हम कितना जानते हैं । ये एक तरह की तहकीक़ात होती है जिसमें पूछने वाला अनजान बनकर आप को परखता है ।

ऐसे समय में समझदारी इसी में होती है कि हम सबसे पहले सवाल नहीं बल्कि उसके पीछे की मंशा को पहचाने । यहाँ प्रश्न उठता है कि ये हम कैसे पहचाने कि ये सच में प्रश्न है या हमारे ज्ञान या समझ की गहरी पड़ताल का एक बहाना मात्र । इसके लिए सवाल करने वाले का अंदाज़ पढ़ना सीखना होता है … वो हर बार वही बात या तो कई रूप में पूछेगा या फिर धीरे-धीरे चौड़ाई से गहराई की ओर जायेगा …तब समझ लेना कि वो जानता है और तुम्हें जानना चाहता है क्योंकि जब कोई किसी बात को जानता ही नहीं है तो गहराई में उतर ही नहीं सकता …वो हर सवाल के साथ और भी मासूम बनने का खेल खेलेगा और … अगर तुम समझ गये... तो तुम भी खेलना ।

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* मूल रूप से ऐसा किसी एक के सवाल के जवाब में लिखा जा रहा है ... पर सामान्य रूप से सभी के लिए है।

आपका नीलेश

मुंबई

Thursday, April 1, 2010

आओ एक गहरी साँस लें ...

दुनिया की आपा-धापी में
आओ गहरी सी एक साँस लें
इतनी गहरी कि
आँखें ख़ुद-ब-ख़ुद
हो जाएं बंद
मन की सारी
बे-चैनी ... हलचल
हो जाए मंद
और
बजने लगे
अन्दर की ख़ामोशी में
अनहद का छंद
आओ पल भर के लिए कर लें अपनी आँखें बंद....
आओ पल भर के लिए कर लें अपनी आँखें बंद....