जिस दिन ज़माने के चलन में ढल जाओगे
उस दिन खोटे सिक्के होकर भी चल जाओगे
पर जो बदलते हैं दुनिया का चलन
फिर उनके जैसे कहाँ बन पाओगे
जो देता है एक शक्ल पिघले सुर्ख इस्पात को
वक़्त के हिसाब से कभी हथियार तो कभी औजार को
जिसके बनते हैं सांचे वो फौलाद बनो
और सच में दम हो तो ख़ुद टकसाल बनो ।
- नीलेश जैन
मुंबई