Sunday, January 25, 2009

एक बार अपने ब्लॉग पर मैंने डूबता हुआ सूरज दिखाया था एक की आपत्ति थी कि आपने डूबता हुआ सूरज क्यों दिखाया है, जबकि आप आशा के सूरज की बात करते रहे हैं ।
भाई जो मुश्किल में होता है, वो डूबते हुए सूरज को ही अपना प्रतीक समझने लगता है , उसे ही तो दिखाना है कि दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील है; सिवाय परिवर्तन के नियम के और यही मानकर दुःख में घबराओ नहीं और सुख में इठलाओ नहीं; क्योंकि न तो ये स्थायी है न वो!
इसीलिए जब भी ये लगे कि आशा की कोई किरण नहीं दिख रही है, तो बहुत गहरे जाकर सोचना होगा कि ये कमी रोशनी की है या उस आँख की जो उसे देख नहीं पा रही है। अगर अन्दर का जज़्बा ज़िन्दा रहे तो इतना काफ़ी है :
वो
जो दूर
वादियों में
जलता है एक दीया
कुछ नहीं दिखता उससे
पर सच है कि रोशनी रही है

नीलेश
मुंबई