Monday, July 13, 2009

परम्परा की भी एक परम्परा होती है

'परम्परा' अतीत से वर्तमान तक का सफर होती है । जब इसमें वर्तमान की युगीन मांग को पूर्ण करने की शक्ति शेष नहीं रहती है तो यह धीरे-धीरे जड़ होने लगती है...और जब ये नकारात्मक परिणाम देने लगती है तो इसे ही 'प्रथा' मान लिया जाता है। इसलिए परम्परा को प्रथा मानने की भूल से बचना होगा और समझना होगा कि :

हर युग को
वर्तमान के सन्दर्भ में
परम्परा का परिष्कार चाहिये
अन्यथा आविष्कार चाहिये ......!