सृजनात्मक व्यक्तित्व अक्सर ये अनुभूत करते हैं कि उनकी एकाग्रता का स्तर अपेक्षित स्तर से कम है । वे इसे सृजन के मार्ग में बाधा भी मान लेते हैं। जिसे हम एकाग्रता की न्यूनता मानते हैं, दरअसल वो ही इस ओर एक इशारा है कि हम कुछ नया -- नवीन -- नूतन प्रस्तुत करने जा रहे हैं; चूंकि वो अदृश्य -- अभूतपूर्व निर्माण होता है, इसीलिए वो स्पष्ट नहीं होता है ... और हमे लगता है कि हम एकाग्रता के अभाव में उसे देख नही पा रहे हैं... वो हमे अप्राप्य है । इसीलिए देखा जाए तो एकाग्रता की अपेक्षा इतनी ही होती है कि जब आप कोई कार्य करें तो अपनी समस्त समर्थता का उसमें सम्पूर्ण निवेश कर दें । सत्य तो ये है कि प्रश्न एकाग्रता की कमी का नहीं हैं क्योंकि यदि कोई; कुछ; कैसा भी पूर्व निर्धारित होगा तभी तो ये सम्भव है कि हम उसके प्रति एकाग्र हो पाएं । पूर्व निर्धारित होना तो सृजनात्मक प्रक्रिया में सम्भव नहीं है क्योंकि :
सृजन के प्रमाण नहीं होते !
नीलेश
मुंबई