बहुत दिनों के बाद लिख रहा हूँ ... लिख पा रहा हूँ... इतने दिनों मानस-गुफा में स्वयं को साध रहा था...और स्वयं सध भी रहा था ... समय कठिन था ... कठिनतर था ... कठिनतम था ...पर गुजर गया ... पर उसके साथ ही गुजर गया वो भी ...जन्म दिया जिसने वो कहीं चला गया.... वो चला गया जिसके होने से मेरा होना है ... वो नहीं है फिर भी आज मुझे होना है ... यही जीवन का परम सत्य भी है और चरम अपेक्षा भी!
राम नाम सत्य है ... ये हम आख़िर किससे कहते हैं ? ... किसके लिए कहते हैं?? वो जो निर्जीव है अथवा जो सजीव है? ये प्रश्न अब समझ आया ... और साथ ही उत्तर भी कि ये संदेश है सजीव को ... जीवन को नित्य बनाने का ... बनाये रखने का ... क्योंकि राम तो वही है जो सब में रमा हुआ है ... समाया है ... और जो सब में है ... रहा है ... वो नश्वर कैसे हो सकता है ... इसीलिए वो सत्य है ... चिरंतर है ... निरंतर है ...!! जब इस सत्य को स्मृत रखा जाएगा तो मृत्यु मौत नहीं लगेगी ... जीवन का अंत नही लगेगी .... अनंत लगेगी ... वो जीवन का अन्तिम उत्सव बन जायेगी ... तब हम उसे सहर्ष स्वीकार कर पायेंगे और शांत मन से कह पायेंगे :
जीवन के हर ऋण को चुकाती है...
मृत्यु मुक्ति बन कर आती है !!! ...
आपका नीलेश
मुंबई