मेरा दामन फिर अश्कों से भर गया
पापा की पहली बरसी पर जब मैं घर गया
घर मुझे बहुत उदास लगा
उसमें किसी बड़े बुजुर्ग-सा एहसास लगा
तब लगा पत्थर भी प्यार करते हैं
वो भी इंतज़ार करते हैं
इन बीते हुए सालों में
कितना कुछ बदल गया था
जिस घर के सांचे में हम ढले थे
वो ख़ुद कितना 'ढल' गया था
अजब था कुदरत का ये खेल भी
कि मुरझा गये थे वो पेड़
जो हमने ख़ुद लगाये थे
और लहरा रहे थे वो
जो ख़ुद उग आये थे
घर के सामनेवाला गुलमोहर
घर पर छतरी-सा छा गया था
और ज़मीन के अन्दर-ही-अन्दर
नींव तक आ गया था
ये देख
एक बुजुर्ग पड़ोसी ने मुझे बुलाया था
और कंधे पर हाथ रखकर
बड़े प्यार से समझाया था ...
जब पेड़ की शाखाएं
बहुत दूर तक फैल जाती हैं
तो वो जड़ों से
बहुत दूर चली जाती हैं
फिर वो पेड़ बिखर सा जाता है
और एक दिन अपने बोझ से
ख़ुद ही गिर जाता है
जिस दिन झुका हुआ ये पेड़
अचानक गिर जायेगा
साया-तो-साया...
नींव भी ले जायेगा...
इसीलिए आते-जाते रहा करो
अगर वक़्त रहते न इनका ख़्याल होगा
तो ज़िन्दगी भर इसका मलाल होगा
दरअसल वो कह कुछ रहे थे
और समझा कुछ रहे थे
तब लगा
एक अजब निगाह होती है
बुजुर्गों में
और कितना गहरा सच छिपा होता है
उनके तजुर्बों में ....
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आप सबका
नीलेश
मुंबई