हम गलियों से ज़्यादा
छतों पर खेले
तब केवल
पतंग और कबूतर की उड़ान थी
या छोटी-छोटी मुंडेरों की छलांग थी
तब दूर तक फैली थी
हमारी छतों की दुनिया
तब तक दीवारें नहीं उठीं थीं
घर भले बंटे थे ;
मोहल्ले नहीं .
हम गलियों से ज़्यादा
छतों पर खेले
तब केवल
पतंग और कबूतर की उड़ान थी
या छोटी-छोटी मुंडेरों की छलांग थी
तब दूर तक फैली थी
हमारी छतों की दुनिया
तब तक दीवारें नहीं उठीं थीं
घर भले बंटे थे ;
मोहल्ले नहीं .
ज़िन्दगी
कोई गणित की किताब नहीं
यहाँ दो-और-दो ...हमेशा चार नहीं
जो ऊपर है, वो 'ऊपर' ही हो
या जो नीचे है , वो 'नीचे' ही हो
ये दुनिया की दलील है
तराज़ू का हिसाब नहीं ।
आपका नीलेश