तब
चार आने की आती थी
छोटी वाली ...
हरी, नीली और मटमैली लाल
वैसे बड़ी भी आती थी
आठ आने की
पर अपना काम
छोटी से ही चल जाता था
पापा की दाढ़ी के ब्लेड से
लगाते थे चीरा
उस 'रबड़ की गेंद' में
और फिर
थोडा दबा के...
पिचका के
उसके अन्दर
मोड़कर रख देते थे
अपने प्यार की चिट्ठी
और फ़ेंक देते थे
जान बूझकर खुली छोड़ी गयी
उसकी खिड़की के अन्दर...
तब कहाँ होते थे एस.एम.एस!
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आपका और उसका भी
नीलेश