कहते हैं कि बनानेवाले ने कुछ भी बे-वज़ह नहीं बनाया। अगर ऐसा है तो फिर क्यों न एक आदत डाली जाए ... इस पूरी कायनात को - इस कुदरत को एक किताब मान लिया जाए और फिर उसके गहरे मायनों को खोजा जाए ... इसी तलाश में लगा कि बनानेवाले ने इस ज़मी की 'ज़मी' को भी अज़ब बनाया है ...जो कभी साथ नहीं हो सकते उन्हें एक साथ रखा है - पानी और आग को ! ... तो क्या ये उसका अपना कोई तरीका है इंसान तक अपना फलसफा पहुंचाने का ...यही सोचते-सोचते ये ख्याल आया :
इस ज़मी में छुपा एक फलसफा यूँ तो साफ़ भी है ...
पर दिखेगा उसको ही जिसके पास 'वो आँख' भी है ...
जिसमें इस बेपनाह गहराई में जाने की पाँख भी है ...
कि जिस ज़मी के अन्दर आब* है उसी में आग भी है ...
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* पानी
आपका नीलेश
मुंबई