होती रही गलती
कितनी बीती तारीखें
कितनी गुजरीं सदी
कहलाता रहा
ठहरा पानी तालाब
गिरता झरना
और बहता नदी
फिर भी हमने समझ लिया
पानी को नदी !
दरअसल
नदी पानी का नहीं बहने का नाम है ।
ऊंचाइयों से नीचे उतरते रहने का नाम है ।
बहते-बहते ... देते-देते गुजरने का नाम है ।
ये कुदरत का है एक सबक जो इंसानियत के नाम है ।
आपका नीलेश
मुंबई