समय कठिन होता है .... तो लम्बा लगता है। पर ये भी तो सच है न कि वो जीवन के सबसे बेहतर सबक सिखाता है। बुरे वक़्त का इम्तिहान ... अच्छा बनाता है। ऐसे में सब ठहरा लगता है ...पर अन्दर बहुत कुछ सक्रिय होता है ... आत्म शोध से लकर आत्म बोध तक की यात्रा ऐसे ही असीम क्षणों में तय की जाती रही है ..... सुख सुलाता है; तो दुःख जगाता है ... तपाता है ... गौतम को 'बुद्ध' बनाता है ... पर बुद्ध बनने के लिए सुख का आसन त्यागना ही होता है ... महलों में भला कौन बुद्ध बना है ?
इसीलिए कठिनाई को सर आँखों पर रखो और अपने आराध्य को इसके लिए धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें इसके लिए चुना और अगर कोई आराध्य ही न हो तो कठिनाई को - बुरे वक़्त को ही 'आराध्य' बना लो... फिर कभी भी... कुछ भी ... नकारात्मक न होगा ... न लगेगा... और जब लगेगा नहीं ... तो होगा नहीं।
आपका नीलेश
मुंबई